indian cinema heritage foundation

Justice (1946)

Subscribe to read full article

This section is for paid subscribers only. Our subscription is only $37/- for one full year.
You get unlimited access to all paid section and features on the website with this subscription.

Subscribe now

Not ready for a full subscription?

You can access this article for $2 + GST, and have it saved to your account for one year.

Pay Now
  • Release Date1946
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
Share
48 views

मशहूर बिझनेस मेग्नेट सर के.सी. मेहता की भांजी और उनके सारी दौलत की बारस कुमारी शोभना देवी अपने आलीशान महल में आये हुए महेमानों के सामने कम्युनीझम पर तकरीर कर रही थी और उनके महेमान भी मेज पर लगे हुए लजीज खाने खाते हुए इन्साफ कर रहे थे.

मगर उनका यह इन्साफ मी. आचार्य (मजदूर दुनिया के एडीटर) की नजरों में बिलकुल बेइन्साफी थी। इसलिये उनकी कलम ने शोभना देवी की तकरीरों के साथ इन्साफ करना शुरू कर दिया। और शोभना देवी का भड़कना लाजमी था। मगर घबराईये नहीं.

इनका यह झगड़ा अदालत तक नहीं पहुंचा। शोभना देवी ने दिल ही दिल में सोचा कि शायद एडीटर का लिखा हुआ ठीक हो इसलिये वो लिबास बदलकर पत्थर के कारखाने में मजदूरों के साथ काम करने के लिये पहुंच गई। जहां एडीटर साहब पहले ही ड्राईवर बने हुए काम कर रहे थे। मगर वहां भी तो सब इन्साफ ही चाहते थे।

फिर क्या हुआ?

मी. आचार्य याने ड्रईवर ने इस मजदूर लड़की की खूबसूरती पर इन्साफ करना शुरू कर दिया जैसा कि एक जवान लड़के को एक जवान लड़की के साथ इन्साफ करना चाहिए। क्या समझे? मोहब्बत और क्या? इधर मजदूर लड़की शोभना देवी भी बडने ही वाली थी कि कुत्ता साहब आ पहुंचे।

कुत्ता साहब के ख्याल में उनका और उनके कुत्ते का रुतबा मजदूरों से कई दर्जे उंचा था। क्योंकि वे शेठ के साले ओर शेठानी सगे भाई थे। बात भी ठीक है। लेकिन मजदूर बिगड़ बैठे और मामला इतना बढ़ गया कि सर के.सी. मेहता को इन्साफ करने के लिये आना ही पड़ा।

दोस्तो, यह लड़ाई इन्साफ के लिये है... गरीब की पुकार... दिल की पुकार... इन्सानियत की पुकार... ये सब झगड़ा इतना बढ़ता जा रहा है कि हम लोग इस इन्साफ को अब आपके उपर छोड़ने पर मजबूर हुवे है आप इन्साफ को देखिये और इन्साफ कीजिये।

[From the official press booklet]